नये वस्त्र पहनकर शिखर जी की वंदना करने की परम्परा क्यों है ?

                प्रायः करके जैन समाज में परम्परा रही है कि सम्मेदशिखर की यात्रा करने वाले बालक - वृद्ध, स्त्री-पुरुष सभी नये कपड़े (जो पहले कभी न पहने गये हो) लेकर जाते हैं और वहाँ उन्हें धोकर पहनकर पर्वत पर चढ़ते हैं। इसका कारण तन-मन की पवित्रता के साथ-साथ वस्त्रों की शुद्धि भी आवश्यक समझना चाहिए । सम्मेदशिखर माहात्म्य में तो यहाँ तक लिखा है कि- जो मोक्षफल को चाहने वाला है, वह श्वेत वस्त्र पहनकर सम्मेदशिखर की यात्रा करे। जो पुत्र चाहने वाला है वह सुपुत्र की प्राप्ति के लिए पीले वस्त्र धारण करके सम्मेदशिखर की यात्रा करे। यदि रोग से पीड़ित काले वस्त्र धारण कर यात्रा करने वाला होवे तो कुछ ही दिन बाद वह सरोगी निरोगता को प्राप्त करता है तथा यह भी कि जो सम्मेदशिखर की यात्रा करने वाला है वह कहीं पर शोक को प्राप्त नहीं होता है । जो लक्ष्मी चाहने वाला है, वह ताम्रवर्णीय वस्त्र धारण कर पर्वतराज सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र की यात्रा प्रयत्नपूर्वक करे। इससे यह अभिप्राय निकलता है कि सर्वोत्तम मोक्षफल की इच्छा से श्वेत वस्त्र पहनकर सम्मेदशिखर की वंदना करना सर्वाधिक शुभ है। उसके मध्य मोक्षप्राप्ति से पूर्व सांसारिक वैभव तो स्वयं प्राप्त हो ही जाएंगे।